मनोज-बबली के मर्डर की सच्ची कहानी: हरियाणा ऑनर किलिंग केस

मनोज-बबली ऑनर किलिंग केस: जब प्यार के खिलाफ खड़ी हो गई परंपरा

हरियाणा के कैथल जिले में साल 2007 में हुई मनोज और बबली की हत्या ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था। यह भारत का पहला ऑनर किलिंग केस था जिसमें अदालत ने दोषियों को फांसी की सजा सुनाई थी। इस घटना ने समाज में चल रही गोत्र और जाति आधारित मानसिकता पर सवाल खड़े कर दिए।

👫 कौन थे मनोज और बबली?

मनोज और बबली, दोनों हरियाणा के करौरा गांव के रहने वाले थे और एक ही गोत्र (बनवाला) से ताल्लुक रखते थे। गांव के रिवाजों के अनुसार, समान गोत्र में शादी करना समाज और खाप पंचायत के खिलाफ माना जाता है। लेकिन इन दोनों ने अपने प्यार को प्राथमिकता दी और 2007 में चंडीगढ़ जाकर मंदिर में शादी कर ली।

🚨 शादी के बाद खतरा और अपहरण

शादी के कुछ ही दिन बाद दोनों ने अदालत से सुरक्षा की मांग की थी। लेकिन 15 जून 2007 को, बबली के परिवारवालों ने पुलिस सुरक्षा के बावजूद उन्हें अगवा कर लिया। कुछ दिन बाद, दोनों की लाशें एक नहर में बंधी हुई हालत में मिलीं। इस घटना में यह भी सामने आया कि पुलिस में तैनात एक कर्मचारी ने आरोपियों को जानकारी दी थी।

⚖️ अदालत का ऐतिहासिक फैसला | Manoj Babli Murder Case Haryana

करनाल की जिला अदालत ने 2010 में इस केस पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया:

  • बबली के भाई, चाचा, चचेरे भाई और अन्य को फांसी की सजा मिली।
  • खाप नेता गंगा राज को उम्रकैद और ड्राइवर को 7 साल की सजा दी गई।
  • 2011 में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने कुछ सजा को उम्रकैद में बदला और दो लोगों को बरी कर दिया।

मनोज की मां चंद्रपति देवी ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जो आज भी ऑनर किलिंग पीड़ितों के लिए प्रेरणा हैं।

🧭 इस केस का समाज पर असर

  • यह मामला भारत में ऑनर किलिंग के खिलाफ कानूनी सख्ती का कारण बना।
  • चंद्रपति और सीमा (मनोज की बहन) ने निडरता से न्याय की लड़ाई लड़ी।
  • हाई कोर्ट ने हरियाणा सरकार को आदेश दिया कि वह पीड़ित परिवार को ₹6 लाख मुआवजा दे।

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✅ निष्कर्ष:

मनोज और बबली की प्रेम कहानी ने भारतीय समाज में गहरी छाप छोड़ी है। यह केस दिखाता है कि प्यार के रास्ते में अगर रुकावटें आती हैं, तो भी संविधान और कानून इंसाफ दिला सकता है। इनकी कुर्बानी ने समाज में बदलाव की शुरुआत की, और आने वाली पीढ़ियों को एक नई सोच दी।

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