एलन मस्क की मंगल ग्रह पर इंसानों को बसाने की योजना हमें किसी कल्पना या काल्पनिक कहानी से कम नहीं लगती। टेस्ला और स्पेसएक्स कंपनी के मालिक एलन मस्क की साफ तौर पर योजना है कि 2050 तक वह मंगल ग्रह पर इंसानों का एक पूरा शहर बसा देगा। लेकिनआखिर Mangal Grah Par Insan Kab Jayega ?
एलन मस्क की 10 लाख लोगों के मंगल पर रहने की योजना और वह भी पृथ्वी की मदद के बिना, का मजाक उड़ाया गया था, लेकिन जब NASA भी SpaceX के मंगल मिशन में शामिल हो गया, तो लोगों को मंगल ग्रह पर घर बनाने के सपने पर विश्वास होने लगा। क्योंकि पिछले कई वर्षों में SpaceX ने राकेट तकनीक में बहुत विकास किया है।
मंगल ग्रह पर इंसान कब जायेगा?
जैसा कि हम जानते हैं कि एलन मस्क की कंपनी टेस्ला इलेक्ट्रिक ऑटोपायलट कार बनाने में भी माहिर है। उसी तरह स्पेसएक्स के रॉकेट में भी ऐसी तकनीक का इस्तेमाल किया गया है, जिसमें वे न्यूनतम ईंधन का उपयोग करके अंतरिक्ष तक पहुंचने की क्षमता रखते हैं। एक विशेष स्टारशिप में इंसानों को पृथ्वी से 6 करोड़ 20 लाख किलोमीटर दूर मंगल ग्रह पर लाने के लिए बनाया जा रहा है। एलन मस्क के मुताबिक, टेस्ला में बनायीं रही बैटरियों से इस स्टारशिप को संचालित किया जाएगा, जिसका मतलब है कि कम से कम ईंधन का उपयोग किया जाएगा और यह मंगल तक पहुंच जाएगा। इस तरह मंगल ग्रह पर इंसान को ले जाया जायेगा।
इंसानों को Mars पर भेजने की क्या जरूरत है?
अब सवाल यह उठता है कि मंगल ग्रह पर मानव कॉलोनी कैसे संभव होगी? वे मंगल की इस बंजर भूमि पर मनुष्यों को क्यों बसाना चाहते हैं, जहां न सांस लेने के लिए ऑक्सीजन है, न खाने-पीने के लिए कोई सामान और न ही माइनस 100 डिग्री सेल्सियस जितनी ठंड में छिपने के लिए जगह। जब वहां बुनियादी सुविधाएं ही नहीं हैं तो मंगल ग्रह पर इंसानों की कॉलोनी बसाना कैसे संभव होगा? जब इस धरती पर इंसानों के रहने की सारी प्राकृतिक सुविधाएं मौजूद हैं , तो फिर इंसानों को Mars पर भेजने की क्या जरूरत है?
पिछले कई साल से हमारे पृथ्वी के स्वास्थ्य पर जो भी शोध हो रहे थे, दुर्भाग्य से उन सभी शोधों के नतीजे नकारात्मक हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि जब से इंसानों ने जीवाश्म ईंधन यानी पेट्रोल और गैस का इस्तेमाल करना शुरू किया है, तब से पृथ्वी का तापमान बढ़ता जा रहा है। और एक समय आएगा जब यह तापमान इतना अधिक होगा कि पृथ्वी पर किसी भी जीवित प्राणी का रहना संभव नहीं होगा।
एक सर्वे के मुताबिक हर 10 सालों में earth का तापमान 0.16 degree C जितना बढ़ रहा है। यानी जिन इलाकों में इंसान रह रहे हैं, अगर सब कुछ ऐसे ही चलता रहा तो आज से 150 साल बाद वहां इंसानों का रहना संभव नहीं रहेगा। बात सिर्फ ईंधन के इस्तेमाल की नहीं है, इस प्रदूषण ने हमारी धरती की ओजोन परत को भी नुकसान पहुंचाया है, जिस ओजोन परत के कारण हम सूरज की जानलेवा किरणों से बचे रहे हैं, वह अब धीरे-धीरे कम हो रही है।
यानी एक तरफ प्रदूषण से पैदा होने वाली गर्मी और दूसरी तरफ भयानक सौर विकिरण। वैज्ञानिकों को एक बात तो तय हो गयी है कि एक न एक दिन हमारी धरती रहने लायक नहीं रहेगी। यही वजह है कि इंसान पहले से ही अपने लिए एक और घर, एक और ग्रह की तलाश में हैं।
मंगल ग्रह ही क्यों?
लेकिन सिर्फ मंगल ग्रह ही क्यों? हमारे सौर मंडल में और भी तो ग्रह हैं। हमारे पास एक पड़ोसी ग्रह शुक्र है और दूसरा मंगल ग्रह है। शुक्र जो मंगल की तुलना में पृथ्वी के बहुत करीब है लेकिन हम वहां नहीं जा सकते क्योंकि वहां वह सब कुछ है जिससे हम दूर भाग रहे हैं यानी गर्मी। जी हां, शुक्र प्लैनेट सूर्य की परिक्रमा करने वाला दूसरा ग्रह है, जो इतना गर्म है कि लोहे को पिघला सकता है।
दूसरी ओर, हमारा पड़ोसी मंगल है, जो सूर्य की परिक्रमा करने वाला चौथा ग्रह है। यह पृथ्वी के आर्कटिक क्षेत्र से भी ठंडा है। केवल कड़ाके की ठंड ही नहीं है जो इंसानों के लिए मार्स पर रहना मुश्किल करे, लेकिन वहां इंसानों के जीवित रहने के लिए बुनियादी सुविधाएं न तो ऑक्सीजन है और न ही पानी। सभी स्थितियों को जानने के बावजूद, नासा और एलोन मस्क के पास आखिरकार ऐसा क्या प्लान है कि वो इंसानों को ज़िंदा रहने में मदद करेंगे।
क्या मंगल ग्रह पर जीवन संभव है?
एलोन मस्क की योजना के अनुसार 2026 तक मंगल ग्रह पर मनुष्यों का एक छोटा ग्रुप जायेगा। इस ग्रुप के पास 2 साल तक रहने की सारी चीज़ें होंगी, यानी खाना-पीना, ऑक्सीजन और pressurized suit. लेकिन इस ग्रुप के वहां जाने से भी पहले मंगल पर एक प्रोटेक्टिव शेल्टर (सुरक्षात्मक आश्रय) बनाना बहुत ही जरूरी है क्योंकि मार्स पर मिट्टी के खौफनाक तूफान इंसानों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। ये प्रोटेक्टिव शेल्टर यानि घर मंगल ग्रह पर वहां के मिट्टी से बनाए जाएंगे, लेकिन जब मंगल पर कोई इंसान नहीं होगा, तो इन घर का निर्माण कौन करेगा?
मंगल ग्रह पर घर रोबोट बनाएंगे?
आश्चर्य की बात यह है कि ये आश्रय या घर मंगल ग्रह पर रोबोट, AI (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) द्वारा बनाएंगे। रिपोर्ट्स के मुताबिक, ये एक खास तरह के रोबोट होंगे जो अलग-अलग हिस्सों में काम कर सकेंगे, लेकिन जरूरत पड़ने पर एक-दूसरे से जुड़ भी सकेंगे। ये रोबोट इंसानों से कहीं ज्यादा तेजी से काम कर सकेंगे। इनमें कैमरा, सेंसर्स, खुदाई करने वाले excavators और 3डी प्रिंटर भी लगे होंगे। सौर ऊर्जा से चलने वाले ये रोबोट पहले sensors की मदद से एक ख़ास तरह की मिट्टी ढूंढेगे। जिस स्थान पर उन्हें ख़ास मिट्टी अधिक मिलेगी, वहां वे अपनी बेस यूनिट स्थापित करेंगे।
इन रोबोट में से जिसका काम खुदाई करना होगा, वह उस क्षेत्र की खुदाई करके मिट्टी इकठ्ठा करेगा और फिर छोटे-छोटे रोबोट मिट्टी रिफाइनिंग unit में ले जायेंगे। रिफाइनिंग के बाद, इस मिट्टी को 3D प्रिंटर यूनिट में पहुंचाया जाएगा, जहां से एक-एक करके 3D प्रिंट किया जाएगा। यह काम कई महीनों तक चलेगा, जिसकी earth से निगरानी की जा सकेगी। शेल्टर पूरा होने के बाद रोबोट का दूसरा चरण शुरू होगा।
इंसान मंगल पर उतरेंगे?
अब इंसानों का एक समूह पहली बार मंगल पर उतरेगा, क्योंकि इंसान यहां पहली बार उतरेंगे, इसलिए उनके पास बहुत सारे सामान होंगे। मंगल पर मौजूद रोबोट्स वहां मनुष्यों का स्वागत करेंगे। उनका सामान उठाकर को लैंडिंग साइड से बेस यूनिट तक लाएंगे। और बेस यूनिट के शेल्टर के अंदर छोटे-छोटे यूनिट्स को रखा जाएगा, जो खुद फूल कर बड़े हो जायेंगे। क्योंकि मंगल का वायुमंडलीय दबाव बहुत कम है, इसीलिए वहां इंसान इन pressurized units में रहेंगे। यानी पृथ्वी की तरह इन units में कृत्रिम दबाव बनाया जाएगा।
ये सभी केबिन एक-दूसरे से जुड़े होंगे और बिजली प्रदान करने के लिए रोबोट की मदद से एक सौर फार्म स्थापित किया जाएगा। अगर आपको बाहर जाना है तो केबिन के दरवाज़े से एक विशेष वाहन लगा दिया जाएगा ताकि दरवाज़ा खोलने से अंदर का दबाव लीक न हो सके।
मंगल ग्रह पर खेती | क्या मंगल ग्रह पर पानी है?
अब बारी होगी मंगल पर ग्रीनहाउस बनाने की। वैज्ञानिकों के मुताबिक मंगल ग्रह पर शुरू में केवल आलू और बीन्स ही लगाई जा सकेंगी, और वो भी हाइड्रोपोनिक तकनीक के ज़रिये यानि बिना मिट्टी के, पानी में। ग्रीनहाउस में पौधे जैसे-जैसे बढ़ेंगे, उनमें से एक ऐसी चीज़ निकलेगी जिसकी हमें सबसे ज्यादा जरूरत है, और वो है ऑक्सीजन। जी हां, मंगल ग्रह पर ये पौधे सब्जियों के अलावा इंसानों को ऑक्सीजन भी देंगे, लेकिन ये ऑक्सीजन इतनी ज्यादा नहीं होगी, इसलिए जितनी जल्दी हो सके वहां ऑक्सीजन बनाने की व्यवस्था की जाएगी।
क्या मंगल ग्रह पर ऑक्सीजन है?
आश्चर्य की बात यह है कि ऑक्सीजन का प्रयोग मार्स रोवर द्वारा पहले ही किया जा चुका है, जो एक विशेष उपकरण है जो सौर ऊर्जा का उपयोग करता है। इसे मंगल के वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड लेकर और इससे गर्मी और विद्युत प्रवाह प्रवाहित किया जाएगा, जो कार्बन डाइऑक्साइड से ऑक्सीजन को अलग करेगा और इस ऑक्सीजन को इकट्ठा करेगा।
यानी अब इंसानों में से एक छोटी टीम वहां ऑक्सीजन बनाने में भी सक्षम होगी। खाने के केवल दो व्यंजन ही होंगे और मंगल ग्रह की सतह के नीचे जमे हुए पानी, जो मंगल पर मौजूद रोवर मार्च पहले ही ढूंढ चुका है। इसलिए बर्फ को पिघलाकर पानी बनाया जायेगा।
खुलासा यह कि मंगल पर भेजे गए इंसान अब पृथ्वी की मदद के बिना जीवित रह सकेंगे और ज़रुरत पड़ने पर वापस पृथ्वी पर आ भी सकेंगे। लेकिन क्या यह सब ऐसे ही चलता रहेगा? वे कभी भी अपने केबिन से बाहर नहीं आएंगे। अगर मंगल ग्रह पर जाकर भी ऐसा ही जीवन जीना हैं, तो इतना ताम-झाम की क्या जरूरत थी?
वैज्ञानिकों के पास इस समस्या का कोई समाधान नहीं है, लेकिन उनका यह विचार है कि यदि मंगल के वातावरण में कुछ बदलाव किए जाएं, जिससे मंगल का तापमान बढ़ जाए, तो हो सकता है कि अगले 100 या 200 वर्षों के बाद मंगल हमारी पृथ्वी जितना हरा-भरा हो जाए। यानि वैज्ञानिकों के मुताबिक, मंगल का तापमान बढ़ाने से वहां पृथ्वी जैसी ज़िन्दगी बसाई जा सकती है।
मंगल ग्रह पर एटम बम से हमला?
एमआईटी की छात्रा मागरिता मैरीनोवा का विचार है कि मंगल ग्रह पर रोबोट की मदद से यदि फैक्ट्रियां बनाई जाएँ, जो सुबह-शाम और दिन और रात एक ही काम करें। इनका काम सिर्फ धुआं पैदा करना होगा और इस धुएं के कारण मंगल ग्रह पर भी वही होगा जो पृथ्वी के साथ हो रहा है, यानी ग्लोबल वार्मिंग। दूसरी ओर, एलन मस्क ने भी तापमान बढ़ाने का एक आईडिया दिया है। वह यह है कि मंगल ग्रह पर परमाणु हथियारों एटम बम का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। उनका कहना है कि अगर मंगल ग्रह पर 10 हजार परमाणु मिसाइलें दागी गईं तो वहां की बर्फ पिघल जाएगी और वहां का कुल तापमान भी बढ़ जाएगा।
निचोड़ (लेख Mangal Grah Par Insan Kab Jayega)
क्या मंगल ग्रह पर जीवन संभव है? एलन मस्क और नासा की अब तक की योजना यही है कि 2026 में पहले मनुष्यों का एक छोटा समूह विभिन्न प्रयोगों के लिए वहां जाए, और फिर उसके बाद हर दो साल में जब पृथ्वी और मंगल एक-दूसरे के करीब आते हैं, तब अधिक लोगों को वहां भेजा जाएगा। 2050 तक 10 लाख लोग मंगल ग्रह पर ऐसे ही pressurized cabin में रहेंगे और साथ-साथ तापमान को बढ़ाने का भी प्रयास किया जाएगा। उनका मानना है कि 100 या 200 साल के बाद वे मंगल को पृथ्वी जैसा ग्रह बनाने में सक्षम होंगे।