Social media ke nuksan: ऐसा कहा जाता है कि आज के आधुनिक युग में अगर कोई व्यक्ति किसी कमरे में अकेला बैठा है, तो वह वास्तव में अकेला नहीं है, बल्कि उसी कमरे में एक शक्ति भी है जो उसके खाने, पीने और सोने के साथ-साथ उसकी हर गतिविधि को नियंत्रित करती है।
वह न केवल उसकी हरकतों पर नजर रखती है बल्कि वह शक्ति उस व्यक्ति से कई काम भी करवाती है। दिलचस्प बात यह है कि यह अदृश्य शक्ति उस व्यक्ति ने खुद लाई है और वह कोई और नहीं बल्कि उसके पास अपना स्मार्टफोन है। Hindi Me Sara में आपलोगों का फिर से स्वागत है।
आज के युग में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जो सोशल मीडिया से दूर हो, भले ही किसी भी कंपनी का स्मार्टफोन हो लेकिन उसमें ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब जैसे ऐप जरूर मौजूद होंगे। यह सोशल मीडिया इतना शक्तिशाली हो गया है कि ये एप्लिकेशन स्मार्ट फोन के लिए बनाए गए थे, लेकिन अब स्मार्ट फोन सोशल मीडिया के लिए बन रहे हैं।
Social Media Ke Nuksan
जैसे-जैसे दिन गुजरते जा रहे हैं, सोशल मीडिया की ताकत बढ़ती जा रही है। यहां तक कि दुनिया की महाशक्ति संयुक्त राज्य अमेरिका का राष्ट्रपति भी अब ट्विटर के जरिए लोगों से बातचीत करता है। हममें से अक्सर लोग यही समझते आ रहे हैं कि सोशल मीडिया एक फ्री एंटरटेनमेंट और जानकारी प्राप्त करने के लिए टूल है, लेकिन असली बात जानकर यक़ीनन आपके रोंगटे खड़े हो जायेंगे।
हम इंसान तो सोशल मीडिया को उनके नाम से जानते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह सोशल मीडिया एप्लिकेशन आपको आपके नाम से नहीं बल्कि एक यूनिक नंबर से पहचानती है, जिसको ID भी कहा जाता है। जेल में कैदियों को एक नंबर से बुलाया जाता है, उसी तरह सोशल मीडिया भी एक जेल की तरह है जिसमें हर यूजर की पहचान एक यूनिक आईडी से की जाती है और आश्चर्य की बात यह है कि एक व्यक्ति खुद को उतना नहीं जानता जितना एक सोशल मीडिया ऐप जानता है।
इन social media एप्लिकेशन को पूरी तरह से मुफ्त क्यों रखा गया है? हर यूजर का डेटा कैसे इस्तेमाल किया जा रहा है और इस डेटा के माध्यम से अरबों डॉलर कैसे कमाए जा रहे हैं, कैसे सोशल मीडिया के पीछे के रोबोट इंसान के भावनाओं का उपयोग कर रहे हैं, और कैसे चीजें इतनी नियंत्रण से बाहर हो गई हैं कि उनके पीछे के इंजीनियर भी अब यह सब नहीं रोक सकते हैं? ये चीज़ें और इससे भी ज़्यादा आज आप इस लेख में जान पाएंगे।
Social Media की आदत
सबसे पहले हम ये जानते हैं कि सोशल मीडिया इतनी एडिक्टिव कैसे बनायीं जाती है? इन कंपनी के बैक बोन ऐसे लोग होते हैं, जो लोगों का ध्यान अपनी ओर मोड़ने में माहिर हैं और उन्हें अटेंशन इंजीनियर भी कहा जाता है। ये वही अटेंशन इंजीनियर हैं जो कैसिनो में विभिन्न गेम डिज़ाइन करते हैं। ये इंजीनियर मानव मस्तिष्क के साथ खेलकर एक ऐसा डिज़ाइन बनाते हैं, जिसको एक बार खेलकर ही इंसान को उसकी आदत या एडिक्शन हो जाती है, यानि उनका लक्ष्य है कि वे कुछ भी करें लेकिन विज़िटर को social media एप्लिकेशन बंद न करने दें।
यह मानव स्वभाव है कि जब भी कोई हमारी सराहना करता है, तो हमें बहुत अच्छा लगता है। इंसान की इसी फितरत को देखते हुए सोशल मीडिया पर थम्स अप, लाइक या दिल का विकल्प दिया जाता है। जब भी हम किसी भी सोशल मीडिया पर अपनी तस्वीर अपलोड करते हैं तो, अपनी तारीफ़ या अपनी फोटो पर लोगों की प्रतिक्रिया देखने के लिए हम बार-बार फोन उठाते हैं और अगर नहीं देखते हैं, तो बार-बार एक संदेश द्वारा संकेत दिया जाता है कि किसी ने आपकी फोटो पसंद की है।
जिसका अर्थ है कि जब हम हमारे फोन से दूर जाना चाहते हैं तो, हमें एक ख़ास योजना के तहत इसे वापस लेने के लिए उकसाया जाता है। लेकिन क्या आपने कभी ध्यान दिया है कि क्योंकि लोग अपनी बुरी बातें सुनना बिल्कुल भी पसंद नहीं करते हैं, इसलिए आपको कई सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर नापसंद या dislike करने का कोई ऑप्शन नहीं दिया गया है मिलेगा।
जब हम सोशल मीडिया इस्तेमाल कर रहे होते हैं तो हमें पता भी नहीं चलता कि हमें एक प्लान के तहत प्रोग्राम किया जा रहा है, हमें न चाहते हुए भी, हमारी रुचि के वीडियो, फोटो और घटनाएं दिखाई जाती हैं। ये पूरी कोशिश की जाती है कि बस हम स्क्रॉल करते रहें और वीडियो देखते जाएँ।
सोशल मीडिया पर दिखावा
इसके अलावा, इंसान की यह स्वभाव भी है कि वह हमेशा दूसरों से अपनी तुलना करता है और खुद को बेहतर बनाने की कोशिश करता है। यही कारण है कि आप खुद को और अधिक स्टाइलिश दिखाने के लिए सोशल मीडिया पर तस्वीरें पोस्ट करते हैं। साथ में सोशल मीडिया पर तरह-तरह के फिल्टर पेश किए गए हैं, ताकि आप और स्टाइलिश दिखें। यानी असल दुनिया में कोई कैसा भी हो, सोशल मीडिया पर भी बेहद खुश दिखना चाहिए।
जब हमारे दोस्त हमारी जिंदगी का सिर्फ वही हिस्सा देखते हैं, जिसे हमने फिल्टर लगा लगाकर आकर्षक बनाया है, तो वे भी हमारी तारीफ करते हैं। फिर वो लोग भी कोशिश करते हैं और भी आकर्षक तस्वीरें पोस्ट करने की। बात तो यहां तक आ पहुंची है कि सोशल मीडिया पर हम अपनी फोटो या वीडियो पर लाइक पाने के लिए ऐसी हरकतें करते हैं जो हम अपनी असल जिंदगी में कभी करने का सोच भी नहीं सकते थे। और यह सब कोई संयोग नहीं बल्कि एक प्लान के तहत करवाया जा रहा है।
अब सवाल उठता है कि अगर ऐसा होता भी है तो क्या फर्क पड़ता है। आखिरकार हमारा अच्छा टाइम पास हो जाता है। सोशल मीडिया एक अच्छा टाइम पास तो करा देता है लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि इनका मकसद भी आपका अच्छा टाइम पास बनाए रखना है, और आप बार-बार उनके प्लेटफॉर्म पर जाते रहें। लेकिन मेडिकल साइंस इस टाइम पास के बारे में क्या कहती है। विज्ञान क्या कहता है यह जानकर जैसे मैं हैरान रह गया था वैसे ही आप भी हैरान रह जाएंगे।
सोशल मीडिया के नुकसान हमारी सेहत पर
विशेषज्ञों का मानना है कि जब हम सोशल मीडिया पर कोई वीडियो या फोटो अपलोड करते हैं, तो हमारा दिमाग हमें अपना फोन देखने के लिए बार-बार चेक करने के लिए मजबूर करता है। और जैसे ही हमें वह खास चीज मिल जाती है जिसका हम इंतजार कर रहे थे, तब हमारे मस्तिष्क में डोपामाइन नामक एक विशेष रसायन रिलीज होता है, फिर हमें ख़ुशी मिलती है और हम रिलैक्स हो जाते हैं।
मेडिकल साइंस का मानना है कि social media देखने से रिलीज होने वाली डोपामाइन की मात्रा उतनी ही होती है जितनी कोकीन जैसे भयानक नशा का उपयोग करके जारी होता है।
जैसे ही डोपामाइन हमारे दिमाग में स्पाइक करता है, उस वक़्त हम बहुत खुश होते हैं। लेकिन जैसे ही मात्रा सामान्य हो जाती है, हम फिर से इसकी मांग करना शुरू कर देते हैं। लेकिन डोपामाइन को दोबारा पाने के लिए हमारे पास ट्रिगर नहीं है, यह ट्रिगर सोशल मीडिया के पीछे बैठे रोबोट के पास है। यह रोबोट तय करता है कि हमारी फोटो लोगों की फीड पर कब तक दिखाई जाएगी।
जब तक फोटो हमारे दोस्तों की फीड पर रहेगी, हमें लाइक मिलते रहेंगे और आखिरकार हमें डोपामाइन भी मिलता रहेगा, और जब हमारी फोटो को मित्रों के social media फ़ीड से हटा दिया जायेगा, फिर हम उसी डोपामाइन को पाने के लिए नए फिल्टर के साथ एक नई फोटो सोशल मीडिया पर अपलोड करेंगे, और इसी तरह यह सिलसिला चलता ही रहेगा।
यानि हम मूल रूप से एक ऐसे जेल में बंद हैं जिसमें कोई सलाखे या ऊंची दीवारें नहीं है। लेकिन हम वही करते है जो ये टेक कंपनियां हमसे कराना चाहती हैं।
सोशल मीडिया बनाने का मकसद
लेकिन इन टेक कंपनियों ने ऐसा क्यों किया? आखिर ये सब करने का मकसद क्या है और सोशल मीडिया इस्तेमाल करने की ये सभी सेवाएं मुफ्त क्यों हैं। सबसे पहले ये समझिए कि अगर आप कोई ऐसा सामान खरीद रहे हैं जिसका कोई मूल्य नहीं है, तो जान लें कि आप स्वयं एक सामान हैं, यानी आपको ही बेचा जा रहा है।
जी हाँ, मान लें कि एक किराने की दुकान के बाहर एक बोर्ड लगा है, मुफ्त चॉकलेट लें। जब लोग मुफ्त चॉकलेट लेने के लिए दुकान में प्रवेश करते हैं, इसके दो फायदे हैं। एक तो यह कि जब दूसरे लोग देखते हैं कि दुकान में भीड़ है तो मानव स्वभाव यह है कि वे भी दुकान में मौजूद लोगों की तरह ही वहां जाना चाहते हैं।
जितने अधिक लोग स्टोर में प्रवेश करेंगे, स्टोर की बिक्री उतनी ही अधिक बढ़ेगी, और उन्हें दूसरा फायदा यह है कि जब आप अपनी मुफ्त चॉकलेट मांगते हैं। आपको या तो एक फॉर्म भरना होगा, यहां कम से कम वे आपसे आपका सेल फोन नंबर मांगेंगे, यानी वे आपसे सिर्फ एक चॉकलेट के लिए आपका डेटा लेते हैं।
लेकिन social media पर सारा डेटा हमसे ले लिया जाता है और हम मनोरंजन के नाम पर इसके आदी हो जाते हैं, हमारा नाम , हमारी उम्र, स्थान, सेल फोन नंबर और यहां तक कि हमारी रुचि भी पूछी जाती है कि हम कहां जाते हैं, किसके साथ किस रेस्तरां में जाते हैं। हम क्या खाना पसंद करते हैं और कौन सी फिल्में देखते हैं, इस डेटा का उपयोग करके हमें हमारी रुचि के आधार पर विज्ञापन दिखाए जाते हैं।
इन social media एप्लिकेशन के पीछे मौजूद हजारों नहीं लाखों सुपर कंप्यूटर वास्तविक समय में निर्णय ले रहे हैं कि उस समय हमें कौन सा वीडियो दिखाया जाना चाहिए ताकि हम इसमें लगे रहें। भले ही कोई फोटो गलती से लाइक हो जाये, तो ये कृत्रिम बुद्धिमान रोबोट हमें उससे संबंधित वीडियो और तस्वीरें दिखाना शुरू कर देंगे। हम जितना समय इन सोशल मीडिया पर बिताते जायेंगे, उतना ही उन्हें फायदा होगा।
सोशल मीडिया के वजह से एक नई बीमारी
चिकित्सा विशेषज्ञों ने पिछले कई वर्षों में एक अजीब बीमारी देखी है और इस बीमारी को कहा जाता है सोशल मीडिया डिप्रेशन। अमेरिका में लाखों नौजवान इस बीमारी के शिकार पाए गए हैं।
डॉक्टर मानते हैं कि जब हम सोशल मीडिया पर दूसरे लोगों के जीवन का नकली हिस्सा देखते हैं, तो हम उनसे अपनी तुलना करते हैं। हम अपनी तुलना ऐसे व्यक्ति से करने लगते हैं जो अपने जीवन का केवल एक प्रतिशत दिखाता है और बाकी 99 प्रतिशत छिपा रहा होता है।
युवा लोग अपने सोशल मीडिया के फ़ीड को देखते जाते हैं और अपने जीवन की तुलना लोगों के जीवन के नकली हिस्से से करते जाते हैं। इसके कारण चिंता विकार और अवसाद जैसी बीमारियाँ उन्हें बहुत कम उम्र में घेर लेती हैं। कई नौजवान जब ये सब सहन नहीं कर पाते हैं, तो वे आत्महत्या भी कर लेते हैं।
क्या आप जानते हैं कि सोशल मीडिया के आने के बाद अकेले अमेरिका में आत्महत्या की दर 151 प्रतिशत तक बढ़ गई है और यह और भी बढ़ती जा रही है। जो सोशल मीडिया एक्सपर्ट ने दिन-रात मेहनत करके ये प्लेटफॉर्म तैयार किया था, वो अब कहते है कि उन्हें पता नहीं था कि सोशल मीडिया इतनी भयानक हो जाएगी। अब ये मामला इतना ज़्यादा कंट्रोल से बाहर हो चूका है कि इसको undo करना मुमकिन नहीं है।
Social Media फेसबुक के मालिक ने क्या कहा?
फेसबुक के मालिक मार्क ज़ुकरबर्ग से जब पूछा गया कि क्या आप बता सकते हैं कि बीती रात आप किस होटल में रुके थे, तो उनका जवाब था नहीं। फिर पूछा गया कि क्या आप बता सकते हैं कि पिछले हफ्ते आपने किस-किस को मैसेज किया, तब ज़ुकेरबर्ग का जवाब था बिलकुल नहीं, ये मेरी निजी बातें हैं, मैं बिलकुल आपको नहीं बता सकता।
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निचोड़ (सोशल मीडिया के नुकसान)
दोस्तों, सोशल मीडिया के फायदे और नुकसान दोनों हीं हैं, फायदे में जहाँ देखा जाये तो यहाँ हम अपने पुराने दोस्तों से आसानी से जुड़ जाते हैं, और कई तरह की अच्छी जानकारी भी यहाँ मिलती है। लेकिन देखा जाये तो सोशल मीडिया के नुकसान के आगे इसके फायदे शून्य के बराबर हैं। उम्मीद है मेरी लेख social media ke nuksan भी आपको पसंद आयी होगी, आगे भी अपनों में शेयर करिये, कोई सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट बॉक्स में पूछें, मिलते हैं अगले लेख में, शुक्रिया।