Israel Palestine conflict in Hindi: इजराइल में आखिर ऐसी क्या चीज़ है कि उसने सारे अरब देश को एक साथ हरा दिया। अब क्यूंकि यहूदियों ने ईसा को मारने का षड्यंत्र रचा था, इसलिए ईसाई और यहूदियों में काफी ज़्यादा नफरत है। इस आर्टिकल में मैं कुछ ऐसे राज़ से पर्दा उठाने जा रहा हूँ जिसके वजह से हो सकता है कि इसे इंटरनेट से डिलीट कर दिया जाए। तो चलिए जानते हैं इजराइल और फिलिस्तीन का विवाद क्या है ?
एक छोटा सा देश है इजराइल, जिसकी जनसंख्या 94 लाख से भी कम है। लेकिन यह देश जिस जगह पर है वो दुनिया की सबसे विवादिद जगह है। हज़ारों साल से यहाँ पर लड़ाई चल रही है। अब सवाल यह है कि आखिर कौन सा मुद्दा है, जिसकी वजह से हज़ारों साल से ये लोग लड़ाई कर रहे हैं?
और आये दिन हम न्यूज़ में देखते है गाज़ा पट्टी, हमास, फिलिस्तीन, टेम्पल माऊंट, मस्जिद-ए-अक़्सा, वेस्ट बैंक तो ये सारी चीज़ें क्या है? और ऐसी क्या वजह है कि पूरे दुनिया के लोग मिलकर भी इस मसले का हल नहीं निकाल पा रहे हैं? और इन सबसे बड़ा सवाल यह है कि इजराइल इतना छोटा सा देश वो भी अरबों से घिरा हो कर भी सारे अरब देश को कैसे हरा दे रहा है?
सारी चीज़ें हम विस्तार में जानेंगे और मैं यहाँ जो भी बाते बताने वाला हूँ वो बिना किसी एडिटिंग के इतिहास के सही सोर्स से ली हुई बातें हैं।
Israel Vs. Palestine
सबसे पहले ये जान लेते हैं कि इजराइल कौन हैं? तो असल में Israel एक देश नहीं बल्कि एक शख्स का नाम है, जिनको याकूब भी कहा जाता है। इजराइल का मतलब होता है, ईश्वर का बंदा यानि ईश्वर का दास, नौकर। याकूब यानि इजराइल के नस्ल से जो थे उन्हें “इजराइल की औलाद” यानि चिल्ड्रन ऑफ़ इजराइल कहना ज़्यादा सही है। और इजराइल वो थे जिनको इस्लाम, यहूदी और ईसाई तीनो धर्म में माना जाता है। तो अब सवाल ये आता है कि इन तीनो धर्म में इतनी समानता क्यों है?
इसका जवाब यह है कि ये तीनो एक ही धर्म है, जिसमें एक ईश्वर का concept है, लेकिन अब इतना विवाद क्यों? इसके लिए शुरुआत से समझते हैं। तीनो धर्मो का ये मानना है कि समय-समय पर ईश्वर ने अपना अनेक संदेशवाहक या पैगम्बर, इंसानो के बीच दुनिया के हर कोने में भेजा। और इस दुनिया के सबसे पहले इंसान यानी आदम ईश्वर के सबसे पहले संदेशवाहक थे। उनके बाद भी कई आये जैसे नूह, इब्राहिम, सुलेमान, दाऊद, याक़ूब (इजराइल) वगैरह।
तीनों धर्म के लोग पहले आये सारे संदेशवाहक और उनके साथ आयी ईश्वर की किताब को मानते हैं। तो इजराइल यानी याक़ूब तक सब ठीक था। इजराइल के मरने के लम्बे समय बाद लोगों ने इजराइल यानी याक़ूब के बताये हुए धर्म में अनेक बदलाव कर दिए थे, और इजराइल के बड़े बेटे, जिसका नाम यहूदा था उसके कहने के मुताबिक धर्म को बदल दिया जिसके वजह से ये यहूदी कहलाये।
इसीलिए जब इजराइल की ही आगे की पीढ़ी में ईश्वर के संदेशवाहक ईसा, बुराई दूर करने के लिए आये, तब यहूदियों ने इनका खुल कर विरोध किया और ईसा को ईश्वर का संदेशवाहक मानने से साफ़ इंकार कर दिया। इतना ही नहीं इसके बाद ईसा को जान से मारने का षड़यंत्र रचने लगे और अपने जानने में उनको शूली पर चढ़ा दिया। (शूली पर ईसा को चढाने से पहले ईश्वर यानि अल्लाह ने उनको ज़िंदा अपने पास उठा लिया ऐसा इस्लाम का मानना है) तब से यहूदी और ईसाई में नफरत है।
चलिए तो अब बारी आती है इस्लाम की, ठीक ईसा के तरह ही जब मक्का में मोहम्मद को ईश्वर ने अपना संदेशवाहक बनाया तब कुछ यहूदी और कुछ ईसाई तो उनको ईश्वर का संदेशवाहक मान लिए, क्यूंकि उनके अनुसार पहले आये संदेशवाहकों के किताब में मुहम्मद के आने की भविष्यवाणी की हुई थी। लेकिन कुछ सीधे उनके खिलाफ हो गए और दुश्मन बन गए।
अब जिन लोगों ने पहले के सारे संदेशवाहकों के साथ मुहम्मद को भी माना उन्ही को हम मुसलमान कहते हैं। अब देखिये यही फर्क है इन तीनो धर्म में। तो एक तरह से ये सारे आदम के बताये हुए धर्म, एक ईश्वर को मानने वाले हैं। जिसकी शिक्षा मौजूदा समय में इस्लाम दे रहा है।
इजराइल, फिलिस्तीन लड़ाई की कहानी
चलिए अब इस ज़मीन की लड़ाई की बात करते हैं। मिस्र में एक राजा फिरौन, बनी इजराइल यानी इजराइल की नस्ल को बहुत सताता था, क्यूंकि वो एक ईश्वर को मानते थे। फिर ईश्वर ने अपना एक संदेशवाहक जिनका नाम था मूसा, उनको इजराइल की संतान को फिरौन के चुंगुल से बचाने के लिए भेजा। मूसा इनको लेकर दूर चले गए। इसके बाद लम्बी कहानी है, जिसको किसी दूसरे आर्टिकल में विस्तार से जानेंगे। इसके कुछ साल बाद ईश्वर ने बनी इजराइल को फिलिस्तीन वाले जगह में बसने का हुक्म दिया।
अब इसके बहुत अर्से बाद 1047 ईसा पूर्व में ईश्वर के एक संदेशवाहक राजा के रूप में यहाँ राज करते थे, जिनका नाम था सोलेमन या सुलेमान और इनके राज्य का नाम था किंगडम ऑफ़ इजराइल जिसकी राजधानी थी जेरूसलम। इसी जेरुसलम में सुलेमान ने यहाँ का पहला इबादत गाह बनाया था, जिसको टेम्पल माऊंट या फर्स्ट टेम्पल या हेक्कल सुलेमानी भी कहते हैं। यहाँ इजराइल की संतान यानी इबादत करती थी।
काफी समय के बाद यहाँ बेबोलियन आएं और इस इबादतगाह को तोड़ दिए फिर यहाँ फारसी आये और इस इबादतगाह को दुबारा बनवाये। इसके बाद रोमन यहाँ आये और इसको फिर से तोड़वा दिए, जिसके बाद इसकी सिर्फ एक दीवार बची रह गयी। रोमन राजा ने चिल्ड्रेन ऑफ़ इजराइल पर अत्याचार किये जिसके बाद ये लोग यूरोप के कुछ हिस्सों में चले गए। अब जो बच गए थे उनमें ही ईसा पैदा हुए।
अब जैसा कि मैंने बताया कि कुछ ने इनको ईश्वर का संदेशवाहक माना तो कुछ इंकार कर दिए। जिन्होनें इंकार किया उन्होंने ईसा को शूली पर चढ़वाने का षड्यंत्र रचा। और आज के समय में भी यहूदी को इसके लिए ज़िम्मेदार ठहराया जाता है। अब साल 306 में कोंस्टेटाइन-द-ग्रेट रोमन का राजा बनता है, जो ईसाई धर्म अपना लेता है। इसके साथ ही यहूदियों को मरवाना शुरू कर देता है। इसके वजह से यहूदियों को रोमन सम्राज्य छोड़ कर पूरे दुनियां में भागना पड़ा, खासकर यूरोप में।
जिस जगह पर ईसा को शूली पर लटकाया गया था, वहां कोंस्टेटाइन-द-ग्रेट ने चर्च ऑफ़ द होली साईपलकर बनवाया। यह चर्च टेम्पल माऊंट जिसको मुस्लिम हरम-अल-शरीफ कहते हैं, से करीब 2 किलोमीटर पर है।
इसके बाद 638 ईसा बाद रोमन को हराकर अरब के उमर की आर्मी आती है। तब यहूदी मुस्लिम खलीफा के अधीन रहते थे, जिसके वजह से उनमे कोई लड़ाई नहीं होती थी। क्यूंकि जहाँ चिल्ड्रन ऑफ़ इजराइल का इबादतगाह था, जो अब सेकंड टेम्पल के नाम से जाना जाता था, वहां डोम-ऑफ़-द-रॉक बनायीं गयी, और उसके साथ में अल-अक़्सा मस्जिद बनायीं गयी।
क्यूंकि डोम-ऑफ़-द-रॉक वही जगह है जहाँ से मुहम्मद मेराज़ के सफर पर जन्नत गए थे, और जहाँ करिश्माई तौर पर सारे संदेशवाहक आकर एक साथ नमाज़ पढ़े थे, वहां अल-अक़्सा मस्जिद बनायीं गयी। और यही पर थोड़े ही दूर पर है वेस्टर्न वॉल, वो दीवार का हिस्सा जो रोमन द्वारा इबादतगाह यानी सेकंड टेम्पल को तोड़ने के बाद बचा रह गया था।
यहाँ से 2 किमी दूरी पर चर्च ऑफ़ द होली साईपलकर है। यानी ये 37 एकड़ का जो क्षेत्र है, मुस्लिम, ईसाई, और यहूदी तीनो के लिए काफी महत्वपूर्ण है। अब आप जेरूसलम के महत्त्व को समझ सकते हो।
अब देखिये जब भी यहूदियों को यहाँ से भगाया गया वो दुनियां के अलग-अलग हिस्से में बस गए, जिसमें सबसे ज़्यादा यूरोप में। लेकिन यहूदी इस जगह को कभी भूले नहीं थे। वो दुनियां में कही भी रहते उसी बचे हुए दीवार के तरफ चेहरा करके इबादत करते।
उसी वक़्त 1891 में एक यहूदी लेखक थे लियोह, जिसने एक किताब लिखी कि यूरोप में भले ही यहूदियों के भले के लिए कानून बना दिया जाए, लेकिन उन्हें अपनी पहचान तभी मिलेगी जब हमारा अपना देश होगा। यह वो वक़्त था जब यहूदियों को जेरूसलम में जो बसने की मांग थी अब राजनीति में बदल गयी थी। इसी को लेकर यहूदियों ने एक आंदोलन शुरू किया जिसका नाम था जिओनिस्म।
Israel का बनना | पहला विश्वयुद्ध
1914 का पहला विश्व युद्ध, जिसमें जर्मनी और इंग्लैंड एक दूसरे के खिलाफ थे और ओटोमन एम्पायर जिसमें यहूदी रह रहे थे, वो जर्मनी के सपोर्ट में आ गया था। अब इंग्लैंड को भी साथी चाहिए थे, और इंग्लैंड को लगता था कि रूस और अमेरिका के जो यहूदी हैं, वो अपनी सरकार को किस तरफ जाना है उसके लिए मना लेंगे (इल्लुमिनाति – ऐसा क्यों था इसका जवाब आपको इस पोस्ट में मिल जायेगा)।
इस वजह से वो यहूदियों को खुश करने में लग गए, इसीलिए यहूदियों को, इजराइल एक अलग देश देने की बात को सपोर्ट किया। इतना ज़्यादा सपोर्ट किया कि इसके लिए एक घोषणा पत्र जिसे बाल्फोर घोषणा पत्र कहते हैं, पास किया। अब पहले विश्व युद्ध में क्यूंकि यहूदियों ने इंग्लैंड का खुल कर सपोर्ट किया और इंग्लैंड जीत गया तब इंग्लैंड ने बाल्फोर घोषणा पत्र के अनुसार फिलिस्तीन वाले जगह में यहूदियों को बसाना शुरू किया।
1878 के ओटोमन सेंसस में फिलिस्तीन की पूरी जनसँख्या 4.7 लाख थी, जिसमें सिर्फ 25 हज़ार यहूदी थे बाकी सारे अरब के मुस्लिम थे, लेकिन 1914 आते-आते यहूदी की जनसँख्या 85 हज़ार हो गयी और आगे चलकर लाखों में हो गयी थी। एक तरफ इंग्लैंड अरबों से कह रहा था कि वो वहां शांति चाहते हैं, और दूसरी तरफ यहूदियों को वहां भेजवा रहा था।
1919-1923 के बीच में पूर्वी यूरोप से 30 हज़ार यहूदी फिलिस्तीन आये, 1924-1926 में पोलैंड से 50 हज़ार यहूदी आये, 1933-1936 में 1 लाख 20 हज़ार आये। अब क्यूंकि यहूदी हर जगह ब्याज़ का काम करते थे और ईसाई धर्म में ब्याज़ का काम गलत माना जाता है, ईसा को शूली पर लटकाने की साज़िश भी यहूदियों की थी। इसलिए यहूदियों को हर जगह परेशानी होती थी। इस वजह से भी भाग कर ये लोग फिलिस्तीन में बसते जा रहे थे, और धीरे-धीरे इनकी आबादी यहाँ के अरब मुस्लिम से ज़्यादा हो गयी।
दूसरा विश्वयुद्ध और इजराइल देश का बनना
अब 1939 में दूसरा विश्व युद्ध शुरू हुआ, इसमें यहूदियों ने खुल कर इंग्लैंड, अमेरिका और सोवियत संघ का साथ दिया, जो एक ही खेमे में थे। इस वार में यहूदियों को ट्रेनिंग मिली जिसका उपयोग वो आगे करने वाले थे। दूसरा विश्व युद्ध ख़त्म हुआ और जर्मनी इसमें हार गया। क्यूंकि यहूदियों ने हर जगह मार खायी थी, इसीलिए तब से ही वो अपने वजूद के लिए अपनी जान लगा देते हैं।
दूसरे विश्व युद्ध के बाद सारे देश मिलकर सोवियत संघ (UN) का निर्माण करते हैं, ताकि आगे कोई लड़ाई न हो और शान्ति बनी रहे। लेकिन UN के अंदर उस वक़्त उनकी चल रही थी जो उस वक़्त वार में जीते थे, जैसे इंग्लैंड, अमेरिका, उन्हीं का दबदबा था।
अब जैसा यहूदियों से इंग्लैंड ने अलग देश का वादा किया था, उसके मुताबिक उसने बाल्फोर घोषणा पत्र UN को दे दिया। अब UN ने एक स्पेशल कमिटी बनाई, इस कमिटी में 11 देश के लोग थे, जो फिलिस्तीन गए और एक रिपोर्ट बनायी। जिसमे कहा गया कि फिलिस्तीन में 1/3rd जनसंख्या यहूदियों की और 2/3rd जनसंख्या अरब मुस्लिम की है, और पूरे ज़मीन का सिर्फ 6% हिस्सा यहूदियों के पास है।
इसके बाद UN के एक बड़ा ऐतिहासिक फैसला लेते हुए कहा कि क्यूंकि फिलिस्तीन का जेरूसलम तीनो धर्म के लिए महत्वपूर्ण जगह है इसलिए जहाँ अरब मुस्लिम ज़्यादा हैं, वो फिलिस्तीन को दे देना चाहिए और जहाँ यहूदी हैं वहां उनको अपना एक देश इजराइल के नाम से दे देना चाहिए। अब जो जेरूसलम है उसको UN के कंट्रोल में रखा जायेगा।
UN में जब भी ऐसा कोई निर्णय होता है तब सारे देश मिलकर वोटिंग करते हैं। वोटिंग हुए और इसमें सारे देश इसके सपोर्ट में वोट किये। इंडिया एकलौता ऐसा देश था जो मुस्लिम देश न होते भी इसके खिलाफ वोट किया। सारे अरब देश ने भी यही वोट किया कि फिलिस्तीन का बटवारा नहीं होना चाहिए। इसके बावजूद बटवारा हुआ क्यूंकि ज़्यादा देश ने इसके सपोर्ट में वोट किया था। अब 1947 में UN ने फिलिस्तीन को टुकड़ों में बाँट कर एक नक्शा पारित किया।
लेकिन UN ने जो बटवारा किया वो बहुत शॉकिंग था, क्यूंकि इजराइल को वो भी जगह मिला जहाँ यहूदियों की जनसँख्या नहीं थी। अब ज़ाहिर सी बात थी, UN के इस फैसले थे अरब देश बिलकुल खुश नहीं थे, वहीँ इजराइल के मिलने से यहूदी बहुत खुश थे। इसके बाद अंग्रेज जो इस जगह राज कर रहे थे छोड़ कर चले गए।
इंग्लैंड के यहाँ से जाने के बाद इजराइल के आस-पास के सारे अरब देशों ने इजराइल पर हमला कर दिया। सबको यही लग रहा था कि इतने सारे अरब देश के बीच इजराइल आसानी से हार जायेगा। लेकिन हुआ उल्टा, इजराइल न सिर्फ जीता बल्कि UN ने जो एरिया उसे दिया था उससे और ज़्यादा कब्ज़ा कर लिया।
Israel का लॉ-ऑफ़-रिटर्न कानून
अब 1950 में इजराइल ने एक कानून पास किया लॉ-ऑफ़-रिटर्न, इस कानून के तहत दुनिया भर में जहाँ भी कोई यहूदी हो वो इजराइल आ सकता था और बस सकता था। अब 1964 में अरब देशो ने मिलकर मिस्र में एक मीटिंग की और Palestine Liberation Organisation (PLO) का गठन किया। PLO एक तरह से फिलिस्तीनी के आर्मी और लीडर का काम करती थी, और इसका काम था फिलिस्तीन को वापस इजराइल से लेना और फिलिस्तीनीओं को उनका घर दिलाना।
अरबों का इजराइल पर कार्यवाई
अब 1967 में मिस्र ने बाकी अरब देशों से बात करके, Starit of Tiran का जो मिस्र का समुंद्री एरिया है, जहाँ से इजराइल व्यापार के लिए दूसरे देश सामान भेजवाता है, उसको बंद कर दिया। नासिर जो मिस्र के राष्ट्रपति थे उनको पता था कि अब इजराइल उनपर हमला करेगा। इसीलिए सारे अरब देश के साथ मिलकर इजराइल पर हमला किया।
लेकिन इस बार भी उल्टा हुआ। इजराइल ने न सिर्फ उन्हें हराया बल्कि मिस्र के बहुत से भाग पर कब्ज़ा भी कर लिया। इसके साथ-साथ गाज़ा पट्टी और वेस्ट बैंक का जो फिलिस्तीन का भाग था वो भी ले लिया। बाद में UN बीच में पड़ा और मिस्र को उसका एरिया वापस मिल गया पर गाज़ा पट्टी और वेस्ट बैंक इजराइल के पास ही रह गया।
इसके 2 साल बाद यानि 1969 में यासिर अराफात PLO के नए चेयरमैन बनें। इनके चेयरमैन बनने के बाद बाकी अरब देश PLO से पीछे हट गए और अब लड़ाई PLO और इजराइल में फेस-टू-फेस शुरू हुई। इसके बाद अलग-अलग तरीके से फिलिस्तीनियों ने PLO के मदद से कई तरह से इजराइल को परेशान किया।
अब इजराइल भी समझ गया था कि PLO आगे चलकर दिक्कत करेगा। PLO के ज़्यादातर सैनिक लेबनान में रहते थे, तो इजराइल ने बिना कुछ सोचे समझे लेबनान पर हमला शुरू कर दिया और आंकड़े के अनुसार करीब 18 हज़ार लेबनान के बेगुनाह लोगों की जान गयी।
इससे परेशान होकर PLO ने 2 राज्य बनाने का ऑफर इजराइल को दिया, इससे पहले PLO पूरी तरह से इजराइल को वापस से फिलिस्तीन में बदलना चाहता था। तो अब PLO की मांग थी कि कम-से-कम UN ने जो निर्णय लिया था वो एरिया उन्हें मिल जाये। लेकिन अब इजराइल वो भी देने से इंकार कर दिया।
इजराइल का अपने बात से मुकरना
आगे जाकर 1993 में गाज़ा पट्टी और वेस्ट बैंक को इजराइल ने वापस देने को मान गया और यासिर को यहाँ का राष्ट्रपति बना दिया गया, और वाइट हाउस अमेरिका में दोनों देश ने साइन कर समझौता कर लिया। इसके बाद लगने लगा कि अब सब ठीक रहेगा। लेकिन समझौता करने के बावजूद इजराइल ने कुछ नहीं किया यानी इसके बाद भी गाज़ा पट्टी में वो यहूदियों को बसने के लिए भेजता रह गया और इन जगहों को फिलिस्तीन को नहीं दिया।
हमास का बनना
अब फिलिस्तीन के जो आम लोग थे उनका इजराइल से भरोसा ही टूट गया और वो कहने लगे कि PLO, इजराइल के चक्कर में पड़ कर सबकुछ खराब कर देगा। अब यहाँ से इंट्री होती है हमास की। हमास लोग, इजराइल पर अरब देश की मदद से अचानक से हमला करने वालों में से थे। ये कुछ भी अचानक से करते।
अब मामला ऐसा हो गया कि दोनों देश के तरफ से जो भी शान्ति की बात करता उसे अपने जान से हाँथ धोना पड़ता था। एक बार जब इजराइल का एक प्रधानमंत्री फिलिस्तीन को लेकर थोड़ा नरम हुआ, तो उसे ही मार दिया गया (ऐसा कौन कर सकता है, इसे समझने के लिए Illuminati पढ़ें)। वैसे ही उधर फिलिस्तीन में PLO कमज़ोर होता गया और हमास को लोगो का सपोर्ट मिलने लगा। अभी की हालत ये है कि हमास गाज़ा पट्टी से अक्सर इजराइल पर हमला करते रहता है।
8 अक्टूबर, 2023 शनिवार का दिन, फिलिस्तीन के सेना दल हमास ने इजराइल के खिलाफ शुरू किया “ऑपरेशन अल-अक़्सा फ्लड”, हमास ने लगातार कई रॉकेट्स को लांच किया, जो इजराइल के शहर में आ कर गिरें। इसके साथ हीं हमास के लड़ाके इजराइल में दाखिल हो गए, और इजराइल के लोगों को होस्टेज बना लिए।
रिपोर्ट यह बताता है कि हमास ने लगभग 5 हज़ार राकेट इजराइल पर दागे और इसके साथ ही उनके लड़ाके इजराइल के क्षेत्र में घुस गए। लेकिन 5 हज़ार रॉकेट्स से तो पूरा देश तबाह हो जाता, तो रिपोर्ट के मुताबिक ये सारे काफी छोटे राकेट थे, जो ईरान से लाये गए थे। इसके साथ ही इजराइल का आयरन डोम।
इजराइल का आयरन डोम क्या करता है?
यह Anti Missile Militant Equipment है। यह आते हुए रॉकेट्स को परख कर एक राकेट खुद लांच कर देता है और हवा में ही आते हुए राकेट को नष्ट कर देता है।
लेकिन इतने ज़्यादा रॉकेट से जब हमला हुआ तो आयरन डोम भी सारे रॉकेट्स को रोक नहीं सका और कुछ इजराइल में आकर गिर गएँ। इसके बाद इजराइल ने हमास के खिलाफ खुला जंग घोषित कर दिया और गाज़ा पट्टी पर जहाँ-तहाँ बम गिराना शुरू कर दिया, जिसको आये दिन आप न्यूज़ में देख सकते हैं कि कैसे मासूम लोगों की जान जा रही है और इंसानियत का ढोंग करने वाले देश चुप-चाप तमाशा देख रहे हैं।
रिपोर्ट के अनुसार हमास ने कुछ लोगों को कैद किया है और उनके ज़रिये उसकी मांग है कि फिलिस्तीन के वो लोग जिनको कैद करके इजराइल अपने पास रखे हुए है और आजाद नहीं कर रहा। आये दिन आप Youtube पर ऐसे वीडियो देख सकते हैं जहाँ इजराइल पुलिस आम फिलिस्तीन नागरिकों को अरेस्ट कर रही है।
नीचे आपके लिए ऐसा ही एक कुछ महीने पहले की ही वीडियो शेयर कर रहा हूँ, जो विचलित करने वाली है। इसमें आम फिलिस्तीनी नागरिक जब मस्जिद में इबादत कर रहे हैं, तभी इजराइल पुलिस मस्जिद में जाकर लोगों को मारने और पीटने लगती है। फिर उनसबको अरेस्ट कर जेल में डाल देती है।
सही बातें कोई नहीं बताता दोस्तों। अब आप खुद सोचें और निर्णय ले कि कौन किसके घर में घुसपैठ कर रहा है और कौन अपने हक़ के लिए लड़ रहा है।
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ऐसे रोचक तथ्य जिसे जानने के बाद आपके सोचने का नजरिया बदल जायेगा
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